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इस बार गज पर सवार होकर आ रही माँ नव दुर्गा

आज से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। इस बार मां दुर्गा शेर की सवारी छोड़ गज (हाथी) पर सवार होकर आएंगी। विशेष बुधादित्य योग में पूजा की जाएगी तो वहीं इस बार भक्तों को मां दुर्गा की पूजा के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे।
आज से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र में मां दुर्गा शेर की सवारी छोड़ गज (हाथी) पर सवार होकर आएंगी। इस बार बुधादित्य योग भी बन रहा है। यह शुभ संयोग है। विशेष बात यह है कि भक्तों को पूरे नौ दिन मां भगवती के व्रत करने को मिलेंगे। नवरात्र में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती सहित दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी।
इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि निर्णय सिंधु के अनुसार नवरात्र पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि है। अत: इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। रविवार प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति और विष्कुंभ योग होने के कारण यह शुभ होगा।
कलश सुख समृद्धि का प्रतीक
ज्योतिषाचार्य विनोद त्यागी ने बताया कि धर्मशास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कालिका पुराण के अनुसार कलश के मुख में श्री विष्णु का निवास होता है। कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं। कलश के मध्य में दैवीय मातृ शक्तियां निवास करती हैं। दिक्पाल, देवता, सातों दीप, सातों समुद्र, सभी नक्षत्र, ग्रह, कुलपर्वत, गंगादि सभी नदियां और चारों वेद कलश में ही स्थित हैं।
क्यों बोया जाता है नवरात्रि में जौ
नवरात्रि में पूजा स्थल के पास जौ बोने की परंपरा है। इसके पीछे का कारण यह कि जौ को ब्रह्रा स्वरूप और पृथ्वी की पहली फसल जौ को माना गया है। मान्यता के अनुसार यदि नवरात्र रविवार या सोमवार से शुरू हो तो मां का वाहन हाथी होता है। यह अधिक वर्षा का भी संकेत देता है।
यदि नवरात्रि मंगलवार और शनिवार शुरू होती है तो मां का वाहन घोड़ा होता है। यह सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि का संकेत बताता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्र की शुरुआत होती है तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट को हर लेती हैं।
नवरात्र में पूजन सामग्री
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, साफ की हुई मिटटी, बोने के लिए जौ, घट स्थापना के लिए कलश, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, लौंग, इलायची, पान, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न, अशोक या आम के पांच पत्ते, कलश के ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल, पानी वाला नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा, फूल माला, फल, पंचमेवा, अखंड ज्योति सहित अन्य। घट के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
पहला मुहूर्त : प्रातः 09:14 से दोपहर 12:05 तक (लाभ व अमृत चौघडिया व वृश्चिक स्थिर लग्न के संयोग)
दूसरा शुभ मुहूर्त : प्रातः 11:43 से 12.30 तक (अभिजीत मुहूर्त)

विशेष तिथियां
नवरात्र आरंभ- रविवार 15 अक्तूबर
श्री दुर्गाष्टमी – रविवार 22 अक्तूबर
महानवमी- सोमवार 23 अक्तूबर
विजयादशमी – मंगलवार 24 अक्तूबर
नवरात्र में खानपान का रखें ध्यान
नवरात्र के दौरान खानपान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। व्रत से पाचन तंत्र मजबूत होता है। शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। डॉ. महेश बंसल ने बताया कि बदलते मौसम में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता होती है। अच्छा खानपान सेहत के लिए लाभदायक होता है।

उपवास के दौरान पौष्टिक आहार लेना चाहिए। डॉ. सुब्रतो सेन ने कहा कि व्रत के दौरान ऐसा भोजन लें जो आसानी से पच जाए। डायटीशियन डॉ. चारु सिंह ने बताया कि व्रत के दौरान तली हुईं चीजों से परहेज करें। तरल पदार्थ जैसे लस्सी, नारियल पानी, जूस आदि का प्रयोग करें। खाली पेट चाय पीने से बचें।

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