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कांग्रेस को यूपी में 20 से कम सीटें मंजूर नहीं

सपा की तरफ से कांग्रेस को 11 सीटें देने की घोषणा की गई थी। यह घोषणा कांग्रेस को रास नहीं आ रही है। वह चाहती है कि 2017 की तरह सपा और कांग्रेस के नेता संयुक्त रूप से प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी घोषणा करें।
यूपी में कांग्रेस 20 से कम लोकसभा सीटों पर कोई भी समझौता मंजूर नहीं करेगी। सपा की एकतरफा घोषणा भी पार्टी नेताओं को रास नहीं आ रही है। यही वजह है कि पार्टी नेता एक स्वर में बोल रहे हैं कि गठबंधन सही दिशा में बढ़ रहा है, पर अभी सीटों पर कोई भी बातचीत फाइनल नहीं हुई है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शनिवार को एक्स के जरिये कांग्रेस को 11 सीटें दिए जाने की घोषणा की। साथ ही कहा कि जीत के समीकरणों के साथ सीट देने का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। कांग्रेस की राज्य कमेटी से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक ने ऐसी किसी जानकारी से इन्कार किया। साथ ही हाईकमान ने तत्काल सभी कांग्रेस नेताओं को इस बारे में मीडिया में कोई भी तल्ख बयान न देने का निर्देश दिया। यह भी तय कर लिया कि अखिलेश के ट्वीट पर क्या बोलना है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से लेकर महासचिव व यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने कमोबेश एक ही बयान दिया।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इन सधे बयानों के नीचे काफी लावा जमा हो रहा है। कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के तहत 25 सीटें मांगी हैं और नेतृत्व यह तय कर चुका है कि 20 सीटों से कम पर कोई भी समझौता मंजूर नहीं किया जाएगा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी सीटें जीती थीं, जबकि कुशीनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद और कानपुर में दूसरे नंबर पर रही थी। वर्ष 2019 में रायबरेली जीती थी, जबकि अमेठी, कानपुर और फतेहपुर सीकरी में दूसरे नंबर पर रहे थे। वर्ष 2009 के चुनाव में उसे 21 सीटें मिली थीं। इस तरह से यूपी में 20-25 सीटों पर तो उसका पुख्ता दावा बनता है। वहीं, पिछले नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस ने कई मुस्लिम बहुल सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि इंडिया गठबंधन के तहत सपा और कांग्रेस की दोस्ती मुस्लिम मतों के विभाजन को भी रोकेगी, जो दोनों के लिए ही फायदेमंद साबित होगा। मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ मजबूती से जोड़े रखने के लिए सपा को भी यह मनोवैज्ञानिक संदेश देना जरूरी होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के कारण वह केंद्र की सत्ता के लिए हो रहे चुनाव में भी विकल्प है। इसलिए सपा के लिए भी कांग्रेस का कम महत्व नहीं है।
कांग्रेस नेता मान रहे सपा की दबाव की रणनीति
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन की घोषणा बाकायदा राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में की गई थी। राजधानी लखनऊ में दोनों का रोड शो भी हुआ था। कांग्रेसजनों का कहना है कि इस बार भी सीटों के बंटवारे की घोषणा कुछ उसी तरह से संयुक्त कार्यक्रम में होनी चाहिए थी, वो भी तब जब सभी सीटें फाइनल हो जातीं। कांग्रेस नेता भितरखाने सपा की घोषणा को दबाव की रणनीति करार दे रहे हैं। हालांकि, इंडिया गठबंधन की एक कमेटी में शामिल सपा नेता कहते हैं कि वर्ष 2017 में भी सीटों की संख्या या इनके नामों की औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। जहां सहमति बनी, वहां प्रत्याशियों को सीधे सिंबल थमा दिए गए थे।

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