वाकया 1978 का है। आपातकाल के बाद रामनरेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई आजमगढ़ सीट पर उपचुनाव हो रहा था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां कांग्रेस उम्मीदवार मोहसिना किदवई के प्रचार में आई थीं।
प्रदेश की तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार के दबाव में उन्हें ठहरने के लिए डाक बंगला नहीं मिला तो उन्होंने एक मंदिर में रात को शरण ली। इंदिरा दो दिनों तक यहां रहीं और मोहसिना के लिए ताबड़तोड़ प्रचार किया।
मोहसिना को जीत दिलाने के लिए इंदिरा को आजमगढ़ आकर खुद मोर्चा संभालना पड़ा। फैजाबाद की तरफ से जिले की सीमा में घुसते ही उन्होंने जनसभाएं करनी शुरू कर दीं। कप्तानगंज पहुंचते-पहुंचते रात का वक्त हो गया।
इंदिरा के रात्रि विश्राम के लिए स्थानीय डाक बंगले में कमरे की मांग प्रशासन से हुई, लेकिन शासन के दबाव के चलते जिला प्रशासन ने डाक बंगले में कमरा आवंटित करने में असमर्थता जता दी। लिहाजा पूर्व प्रधानमंत्री को कप्तानगंज कस्बे के पंचदेव मंदिर में रात गुजारनी पड़ी।
अगले दिन पूरे जिला मुख्यालय पर पहुंचकर मोहसिना के समर्थन में बड़ी जनसभा की। दो दिन में उन्होंने वरिष्ठ पार्टी नेताओं के साथ पूरे चुनाव का तानाबाना बुन डाला। जनता पार्टी के प्रत्याशी रामबचन यादव को इस चुनाव में शिकस्त खानी पड़ी।
दो दिन में बदली फिजा
उपचुनाव में अंतिम दो दिनों में पूरी चुनावी फिजा ही बदल गई थी। इंदिरा ने मोहसिना को जिताने के लिए ताबड़तोड़ सभाएं और बैठकें की। स्थानीय नेताओं को चुनावी प्रबंधन का काम सौंपा। खुद पूरे प्रचार अभियान की निगरानी की।
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