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आजमगढ़ में हमेशा मुद्दों पर भारी पड़े जातिगत समीकरण

जानें- विकास की क्या है व्यवस्था

आजमगढ़ लोकसभा सीट यादव बहुल रही है। यही कारण रहा है कि यहां पर 14 बार सिर्फ यादव सांसद चुने गए हैं। भाजपा ने दूसरी जाति के प्रत्याशी को मैदान में उतारा लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इसलिए इस बार यहां जाति को लेकर काफी ध्यान रखा गया है।
लोकसभा चुनावों में अगर आजमगढ़ सीट का इतिहास देखें तो यादव बाहुल इस सीट पर अब तक 14 बार यादव सांसद चुने गए हैं। भाजपा ने इस सीट पर सवर्ण और मुस्लिम प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे जीत नसीब नहीं हुई। जब 2009 में पार्टी ने इस सीट पर रमाकांत यादव को प्रत्याशी बनाया तो उसे जीत मिली। इसके बाद 2022 के उपचुनाव में पार्टी ने दिनेश लाल यादव को उम्मीदवार बनाया और जीत हासिल की। बेशक विकास के मामले में जिला पिछड़ा हुआ है। ज़ब वोट देने की बारी आती है तो जातिगत आधार पर मतों का ध्रुवीकरण कुछ इस तरह होता है कि विकास से जुड़े मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। 1989 में बसपा का हाथी इस सीट पर पहली बार सरपट दौड़ा था। 1996 में रमाकांत ने सपा की साइकिल को यादव और मुस्लिम गठजोड़ से दौड़ाया। 1998 में बसपा के अकबर अहमद डंपी ने जीत दर्ज की।
1999 में रमाकांत ने एक बार फिर सपा से इस सीट पर कब्जा जमाया। 2004 में रमाकांत यादव बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत हासिल की। 2009 में रमाकांत भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और उन्होंने इस सीट पर पहली बार भाजपा का परचम फहराया।

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