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परिवारवादियों की राह पर मायावती, अन्य दल, निषाद पार्टी की तरह परिवार के बाहर नहीं सोच पाई बसपा

मायावती द्वारा रविवार को अपने भतीजे और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित करने की घोषणा के बाद एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति पर चर्चा शुरू हो गई है। विधान परिषद और विधानसभा में मात्र एक-एक सदस्य के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर यह बड़ा राजनीतिक दांव खेला है।
बसपा सुप्रीमो मायावती भी देश व प्रदेश के दूसरे कई राजनीतिक दलों की तरह परिवारवाद की राह पर चल दी हैं। मायावती द्वारा रविवार को अपने भतीजे और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित करना इसका प्रमाण है। विधान परिषद और विधानसभा में मात्र एक-एक सदस्य के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर यह बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। बसपा सुप्रीमो की इस घोषणा के बाद एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति पर चर्चा शुरू हो गई है। विश्लेषक मानते हैं कि इसने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और जनता को सोचने का विषय दिया है कि पार्टियों के परिवारवाद में उनका महत्व कहां और कितना हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बसपा संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम राजनीति में परिवारवाद के विरोधी थे। उन्होंने अपने भाई दरबारा सिंह से लेकर अन्य परिवारजन को राजनीति से दूर रखकर मायावती को बसपा का उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन अब मायावती ने भी परिवारवाद की ही राह अपनाई है। मायावती ने पहले अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। अब भतीजे को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती ने पहले यह संकेत दिए थे कि उनका उत्तराधिकारी जो भी होगा वह उनसे छोटी उम्र को होगा।
आकाश को जिस तरह से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा के चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई थी। उससे संकेत मिल रहे थे कि मायावती जल्द उन्हें उत्तराधिकारी घोषित कर सकती है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में उम्मीद के हिसाब से सफलता न मिलने के बाद मायावती ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने परंपरागत दलित वोट बैंक को साधने के लिए दांव खेला है। आकाश को उत्तराधिकारी घोषित कर उन्होंने दलित वोट बैंक को बिखरने से रोकने और बसपा के साथ लामबंद रखने की कोशिश की हैं। साथ ही युवा वर्ग को साधने के लिए बड़ी हैसियत के साथ आकाश को आगे बढ़ा दिया है। आकाश न सिर्फ युवा हैं बल्कि टेक्नोसेवी भी हैं और युवाओं से कनेक्ट बनाते नजर आते हैं। मायावती की इस घोषणा ने एक बार फिर प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति का मुद्दे को हवा दे दी है।
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का मानना है कि मायावती ने सत्ता में रहने के दौरान भी पार्टी में कभी दूसरी पंक्ति तैयार नहीं की थी। उसकी वजह यह है कि वह किसी पर जल्द और ज्यादा विश्वास नहीं करती हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सहित चंद नेताओं को छोड़ दें तो बाकी सभी पुराने दिग्गज नेता मायावती को छोड़कर चले गए हैं।
जनता और कार्यकर्ताओं के लिए सोचने का विषय
रतनमणि लाल मानते हैं कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और जनता के लिए सोचने का विषय है कि किस तरह राजनीतिक दल जनता के वोट और कार्यकर्ताओं की मेहनत से सिर्फ परिवार को आगे बढ़ाते हैं। इससे कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता प्रभावित होती है कि वह चाहें कितनी भी मेहनत और समर्पण से काम करें लेकिन जब महत्वपूर्ण पद की बात आएगी तो परिवार के किसी सदस्य को ही चुना जाएगा।
मिशन से जुड़े कार्यकर्ता आहत होते हैं
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि स्वर्गीय कांशीराम ने बहुजन मिशन के साथ पार्टी की स्थापना की थी। लेकिन अब वह परिवार की पार्टी बन गई है। राजनीतिक दलों के परिवारवाद से वे कार्यकर्ता आहत होते हैं जो किसी समाज या देश के मिशन को लेकर उनसे जुड़ते हैं। ऐसे में अब तमाम परिवारवादी दलों में वे ही लोग जुड़ रहते हैं जो चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि पार्टी के टिकट पर उस दल या समाज से जुड़े लोगों का वोट मिल जाए। उनका कहना है कि मायावती को आकाश को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना था। यही वजह है कि समय रहते उन्होंने अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया।
परिवारवाद का पर्याय सपा
प्रदेश के राजनीतिक हल्कों में समाजवादी पार्टी को परिवारवाद का पर्याय माना जाता है। सपा के संस्थापक स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव ने 2012 में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था। 2016-17 में पार्टी के नेतृत्व को लेकर छिड़ी जंग में सपा की कमान अखिलेश यादव को मिली। वर्तमान में अखिलेश यादव के चाचा प्रो. रामगोपाल यादव पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव हैं। दूसरे चाचा शिवपाल यादव भी पार्टी के महासचिव हैं। अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से सपा की सांसद हैं। सपा के परिवारवाद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अखिलेश के विधायक निर्वाचित होने के बाद उनके इस्तीफे से खाली हुई आजमगढ़ सीट पर चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया गया। हालांकि धर्मेंद्र चुनाव हार गए। स्वर्गीय मुलायम सिंह के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर राजनीतिक विरासत में वह सीट डिंपल यादव को मिली। इससे पहले चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव बदायूं और अक्षय यादव फिरोजाबाद से सांसद रहे हैं।
भाजपा में नेताओं का परिवारवाद
भाजपा भले ही दूसरे दलों पर परिवारवाद का आरोप लगाती है। लेकिन भगवा दल भी परिवारवाद से अछूता नहीं हैं। पार्टी में दिग्गज नेताओं का परिवारवाद चलता रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह नोएडा से दूसरी बार विधायक होने के साथ पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह एटा से सांसद हैं। उनके बेटे संदीप सिंह योगी सरकार में बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं। सपा से भाजपा में आए पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल आबकारी राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं। इनके अतिरिक्त भी भाजपा सरकार के मंत्रियों और सांसदों के परिवारजन जिला पंचायत अध्यक्ष, क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष, जिला सहकारी बैंकों के अध्यक्ष हैं।
रालोद में बड़े चौधरी के बाद छोटे चौधरी
राष्ट्रीय लोकदल भी पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारवाद की ही चाल चल रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने लोकदल का गठन किया था। उनके निधन के बाद लोकदल को लेकर हुए विवाद के बाद अजीत सिंह चौधरी ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया। अजीत सिंह के निधन के बाद अब उनके बेटे जयंत चौधरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
सुभासपा का परिवारवाद
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी यूं तो अति पिछड़े वर्ग की वकालत करते हैं। लेकिन उनकी पार्टी भी परिवारवाद में पीछे नहीं हैं। राजभर ने भी अपने बेटे अरविंद राजभर को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना रखा है। राजभर इन दिनों लोकसभा चुनाव में अपने बेटे अरविंद राजभर और अरुण राजभर के राजनीतिक समायोजन के प्रयास में हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में अरविंद को चुनाव लड़ाकर लोकसभा भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
अब तीसरे बेटे का भी समायोजन चाहते हैं निषाद
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद स्वयं प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनका बेटे इंजीनियर सरवन निषाद चौरीचौरा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक है। वहीं एक बेटे प्रवीण निषाद संतकबीर नगर से भाजपा सांसद हैं। संजय निषाद अब अपने सबसे बड़े बेटे डॉ.अमित को भी लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि संजय निषाद निषाद समाज के वोट बैंक पर राजनीति करते हैं। निषाद पार्टी से छह विधायक हैं, लेकिन उनमें निषाद समाज का एक भी विधायक नहीं हैं।
अपना दल भी अपनों तक सीमित
अपना दल भी अपनों तक ही सीमित है। अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। उनके पति आशीष पटेल प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वहीं अपना दल कमेरावादी की अध्यक्ष कृष्णा पटेल की बेटी पल्लवी पटेल सपा से हुए गठबंधन के तहत सपा की विधायक हैं। पल्लवी के पति पंकज सिंह निरंजन पार्टी के महासचिव हैं।
कांग्रेस में पुराना परिवारवाद
यूं तो गांधी परिवार के नाते कांग्रेस हमेशा से ही परिवारवाद के मुद्दे पर निशाने पर रही है। इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक परिवारवाद के उदाहरण हैं। प्रदेश में भी कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी की बेटी आराधना मिश्रा मोना विधायक हैं। कांग्रेस नेता पीएल पूनिया के बेटे तनुज पूनिया पीसीसी के पदाधिकारी हैं।
अब बसपा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी : भाजपा
बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से भतीजे को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद भाजपा ने मायावती पर तंज कसा। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि उत्तराधिकार परिवार में होता है, राजनीतिक दल में नहीं। उन्होंने कहा कि मायावती ने पहले कांशीराम के मिशन को कमीशन में बदला और अब परिवारवाद के दलदल में धकेल दिया। उन्होंने कहा कि अब बसपा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

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