कोर्ट ने याची की पिस्टल अवमुक्त करने का आदेश देते हुए कहा कि आत्मरक्षा में फायरिंग शस्त्र लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन नहीं है। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निचली अदालत के निर्णय पर भी सवाल उठाए।
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि आत्मरक्षा में पिस्टल से फायर करना लाइसेंस की किसी शर्त का उल्लंघन नहीं है। यह शस्त्र अधिनियम की धारा 30 के तहत अपराध होना नहीं प्रतीत होता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याची की लाइसेंसी पिस्टल अवमुक्त करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने यह आदेश सुनील दत्त त्रिपाठी की याचिका पर दिया। याची के खिलाफ गाजीपुर थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी। इसमें आरोप था कि उसने साथियों के साथ मिलकर वादी और अन्य लोगों को जान से मारने की नीयत से पिस्टल से गोली चलाई। हालांकि, इस कथित फायरिंग में किसी को गोली नहीं लगी।
पुलिस ने मामले की तफ्तीश के बाद याची व अन्य के खिलाफ अन्य धाराओं के साथ ही शस्त्र अधिनियम की धारा 30 के तहत भी आरोपपत्र दाखिल किया। जमानत पर छूटने के बाद याची ने अपनी लाइसेंसी अमेरिकन ग्लॉक पिस्टल व चार कारतूसों को अवमुक्त करने की अर्जी निचली अदालत में दी थी, जो खारिज हो गई। इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल की। इसमें निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 30, लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन को अपराध घोषित करती है। इस मामले में लाइसेंस की किस शर्त का उल्लंघन हुआ, इसे निचली अदालत ने स्पष्ट नहीं किया। कोर्ट ने याचिका मंजूर कर याची की पिस्टल व कारतूस तुरंत अवमुक्त करने का आदेश देकर निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया।
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