पुतलीबाई चंबल की पहली महिला डाकू थी। वह कुख्यात सुल्ताना डाकू की प्रेमिका थी। चंबल की आतंक पुतलीबाई पुलिस मुठभेड़ में 23 जनवरी 1958 को मारी गई थी। पुतलीबाई का मुरैना, धौलपुर, आगरा से गहरा जुड़ाव रहा है।
पहली महिला डकैत पुतलीबाई (32) की मुरैना के कौथर में 23 जनवरी 1958 में हुई मुठभेड़ में मौत हुई थी। चंबल के बीहड़ के गांवों में उसकी प्रेम कहानी अब भी मशहूर है। 1972 में फिल्मी पर्दे पर भी उसकी प्रेम कहानी को उतारा गया था।
1926 में काकोरी के नायक रामप्रसाद बिस्मिल के गांव रूअर बरबई में नन्हे खां की पत्नी असगरी ने एक बेटी को जन्म दिया। उसका नाम गौहरबानो रखा गया। नृत्य गायन में पारंगत हुई गौहरबानो की धौलपुर, कानपुर, आगरा में नृत्य की महफिलें जमने लगीं। आगरा के बसई में उसकी नृत्य की महफिलों की चर्चा लखनऊ तक पहुंची तो असगरी गौहरबानो संग आगरा को छोड़कर अपने गांव वापस लौट गई।
25 साल की उम्र में धौलपुर में जमी एक महफिल में डकैत सुल्ताना पहुंच गया और उसे अगवा कर ले गया। कहते हैं कि चंबल के बीहड़ में सुल्ताना की मोहब्बत बनकर उतरी गौहरबानो डाकू के प्रेम में दिल हार गई और यहीं से उसे नया नाम मिला पुतलीबाई।
पुतलीबाई ने सुुल्ताना की बेटी तन्नो को जन्म दिया। खून-खराबे से ऊब चुकी पुतलीबाई घर लौटी तो पुलसिया उत्पीड़न ने बीहड़ में वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया। 25 मई 1955 में पुलिस मुठभेड़ में सुल्ताना के मारे जाने के बाद पुतलीबाई ने गिरोह की कमान संंभाली।
1957 में हुई मुठभेड़ में पुतलीबाई को एक हाथ गंवाना पड़ा। एक हाथ से बंदूक चलाने में माहिर हुई पुतलीबाई 23 जनवरी 1958 को हुई मुठभेड़ में मारी गई।
सजने संवरने का था शौक, संग्रहालय में रखे हैं गहने
दस्यु सुंदरी बनने के बाद भी पुतलीबाई ने सजने संवरने का शौक नहीं छोड़ा था। एनकाउंटर में मारे जाने के बाद उसके पास से सोने के जेवर में ताबीज, दो चूड़े, मोहर, माथे के बोर के टुकड़े, बालों की लंबी चोटी और क्लिप के अलावा कलाई की घड़ी, राइफल का कब और शराब की बोतल, चांदी का प्याला बरामद हुआ। जो जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी परकोटा सागर स्थित संग्रहालय में रखे हैं।
बीहड़ में इन डकैतों के प्रेम के भी रहे चर्चे
सुल्ताना और पुतलीबाई ने जिस प्रेम की कहानी को शुरू किया था, दूसरे डकैत भी इससे अछूते नहीं रहे। निर्भय गुर्जर-बसंती, रज्जन गुर्जर-लवली पांडेय, राम आसरे उर्फ फक्कड़-कुसमा नाइन, लाला राम-सीमा परिहार, सलीम गुर्जर-सुरेखा, जगन गुर्जर-कोमेश, श्याम जाटव-नीलम का प्रेम भी अलग-अलग समय में परवान चढ़ा। जिसके किस्से भी बीहड़ के गांवों में सुने जाते हैं।
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