लखनऊ। मऊ जिले के दोहरीघाट नगर निवासी श्रीराम जायसवाल ने भारतीय संस्कृति को सिक्कों के रूप में संजोने का काम बचपन से करते आ रहे है. उनके पास देश-विदेश की प्राचीन मुगलकालीन, देशी रियासतों, सल्तनत, ब्रिटिश हुकूमत के सिक्के मौजूद है. गोमती नगर स्थित अंतराष्टीय बौध्द शोध संस्थान में भारतीय मुद्रा परिषद के 104वें वार्षिक सम्मेलन के साथ मुद्रा मेला में जीवों पर दया करो स्लोगन से विविध देशों के सिक्के लगा रखा है. उन पर हाथी, घोड़ा व अन्य जीव जंतुओं के चिह्न बने हैं. देश की 81 रियासतों के भी सिक्के उनकी स्टाल पर आकर्षण का केन्द्र बने हैं.
वहीं दिल्ली के राहुल कौशिक के स्टाल पर 1922 का पांच रुपये का नोट है, ये यूनीफेस यानी नोट का एक चेहरा होने से आकर्षण का केंद्र है, कीमत करीब 35 हजार रुपये है. कौशिक ने जार्ज पंचम, जार्ज षष्टम से लेकर अब तक के हर तरह के नोट प्रदर्शित किए हैं. इसी तरह 10, 350, 500, 550 व 1000 रुपये के सिक्के भी यहां आकर्षण का केंद्र हैं. लखनऊ के अशोक कुमार के स्टाल पर ब्रिटिश काल का एक रुपये का नोट दस लाख का है. हज पर जाने वालों को मिलने वाला 10 का नोट छह लाख और अरब सागर के आसपास के देशों के लिए नारंगी रंग के एक, पांच व दस के नोट डेढ़-डेढ़ लाख रुपयों के हैं. उन्होंने दो, पांच व 20 रुपये के शुरुआती भारतीय नोट भी संजो रखे हैं, तो ब्रिटिश काल का 50 रुपये के नोट का भाव आठ लाख रुपये है.
प्रदर्शनी में 49 मिलीग्राम का सोने का सिक्का विजय नगर साम्राज्य का है. इसी के बगल में 10 लाख मिलीग्राम यानी एक किलोग्राम का चांदी का सिक्का भी है. अशोक ने 1950 में एक पैसा से लेकर एक रुपये तक के 35 सिक्के लगा रखे हैं. इनके पास कई दुर्लभ नंबर वाले नोटों की गड्डियां भी हैं. इटली के गणितज्ञ लियोनार्डाे पिसानो फिबोनाची संख्या सिद्धांतकार थे. उनके संख्या अनुक्रम को फिबोनाची श्रृंखला कहा जाता है. इसमें एक, दो, तीन, पांच, आठ, 13 …. आदि हैं. यानी अगली संख्या पिछली दो संख्याओं का जोड़ है. देश में नोट दस लाख की संख्या में छपता है, इसलिए इस श्रृंखला में 29 नोट हो सकते हैं. पहली गड्डी में 14 नोट मिलते हैं, जबकि शेष 9999 गड्डियों में 19 नोट मिलते हैं. प्रदर्शनी में पूरी श्रृंखला संजोई गई है.